Sampadkiye

जिसे अपना देश कहा जाता है, उसका नुक्सान क्यों?


 


हर भारतीय लड़की की भाँति शादी के बाद मैं वहीं आकर बस गई, जहाँ पति की नौकरी थी। 1982 से अमेरिका में हूँ। यहाँ की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों और समय-समय पर आए इस देश में परिवर्तनों के साथ मेरे जीवन की गाड़ी भी चलती रही। हर आम लड़की की तरह समय-समय पर मैंने अपने मायके को याद किया । हम परदेसने देश को मायका ही कहती हैं। मायके की यादें बेहद सकून देती हैं, उससे जुड़े रहना कितना सुख देता है, यह बस महसूस किया जा सकता है; इसे शब्दों में बाँधना कठिन है। सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो..... ( गुलज़ार ) देश में कोई दुर्घटना घटे तो उसका असर इस देश में बैठे भारतीयों पर भी पड़ता है और सबके भीतर तक चोट पहुँचती है। ऐसे में विवेक अपना बही-खता खोल लेता है और दो देशों का 'बेस्ट' होते हुए, सही-गलत का अंतर्द्वद्व अपना मोर्चा खोल लेता है।___ मित्रो, कुछ न कर पाने की लाचारी कितनी पीड़ादाई है, यह सिर्फ भुक्तभोगी ही जान सकता है। गैंग रेप के समाचार पढे, टीवी में उन्हें बार-बार दिखाया गया। विचलित होना स्वभाविक है। ___गैंग रेप आठ साल की बच्ची का हो या किसी महिला का अत्यंत शर्मनाक घटना है । दिन-ब-दिन बलात्कारी बढ़ते जा रहे हैं। पुरुष सत्ता की सोच अमानवीय हो रही है या स्त्री का सबल होना पुरुष सत्ता को चुनौती लगता है। जानना चाहती हूँ, कहाँ हैं मेरी वे बहनें! क्या कर रही हैं अब वे! जो मूवी के एक दृश्य के लिए तो नारी की अस्मिता और संस्कृति को बचाने की गुहार लगा कर जुलूस में आगे चल कर खूब नारे बाज़ी कर रही थीं। बलात्कार के खिलाफ क्यों खड़ी नहीं होती ? क्या अपनी ही जात के साथ हो रहे इस घृणित अत्याचार का उन्हें कोई रंज नहीं। अब कोई जुलूस नहीं निकल रहा, कहीं कोई तोड़-फोड़ नहीं हो रही। आरक्षण के लिए भी जुलूस निकले, बाज़ार बंद हुए। और बलात्कार के लिए सोशल मिडिया पर बस सहानुभूति....... बहनों! ज़रा सोचें, क्या हममें इतनी भी शक्ति नहीं कि हम अपने लिए खड़ी हो सकें। साहित्य में स्त्री-विमर्श का कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा, अगर हम उससे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं ला सकती। अब मैं उस देश की बात करती हूँ, जहाँ रह रही हूँ और वर्षों से लोगों को परिवर्तन लाते और उसके लिए कार्य करते देखा है। हालाँकि वोटबैंक की राजनीति यहाँ भी कम घिनौनी नहीं।