एक और इबारत विकेश निझावन
प्लाज़ा अपार्टमेन्ट की सातवीं मंज़िल पर मैं लिफ्ट द्वारा पहुँचा था। प्रफुल्ल से मोबाइल पर तय हो गया था कि हम पूरे सात बजे उसी के कमरे में मिलेंगे। पट्टा मोबाइल पर ही चालीस मिनट बात करता चला नहीं करता। लेकिन जब अपना ही जीवन कटरा-कतरा होकर अपने ही सामने बिखरने लगता है, उसे समेटने के लिए ऐसा पड़ता है। यों कह लो कि व्यक्ति अनायास ही इस शराब में डूबने लगता है।' 'तुम भावुक हो रहे हो प्रफुल्ल!' __'हाँ! तूने ठीक जानाज़िन्दगी इतनी व्यवहारिक हो गई है कि जब थोड़ा सा एकान्त मिलता है, तो अपने बारे सोच खुद से ग्लानि होने लगती है। ऐसे भावुकता आड़े आ जाती है।' हवा का तेज़ झोंका भीतर आया तो महसूस हुआ नहीं करता। लेकिन जब अपना ही जीवन अहसास होने लगा कटरा-कतरा होकर अपने ही सामने बिखरने मेरी जान में जान आईलगता है, उसे समेटने के लिए ऐसा करना माथा और शरीर प्रफुल्ल पड़ता है। यों कह लो कि व्यक्ति अनायास अँधेरे में। ही इस शराब में डूबने लगता है।' अब तक प्रफुल्ल 'तुम भावुक हो रहे हो प्रफुल्ल!' शब्दों का इंतज़ार था__'हाँ! तूने ठीक जानाज़िन्दगी यहाँ लिए मुझे स्वयं को इतनी व्यवहारिक हो गई है कि जब कभी अधिक न सही, उसकी थोड़ा सा एकान्त मिलता है, तो अपने बारे में में कुछ तो बोलूँ। लेकिन सोच खुद से ग्लानि होने लगती है। ऐसे में भी महसूस हो रहा भावुकता आड़े आ जाती है।' हवा का एक इसी अँधेरे के पीछे तेज़ झोंका भीतर आया तो महसूस हुआ कि अभी मेरे सामने सवाल उसमें एक गीलापन हैहम दोनों ने चेहरा खामोश क्यों हूँ। तब गया था। पिछले बीस बरसों का खाता खोल कर बैठ गया था। __'लगता है, पैसा बहुत बना लिया है। जानता है इस वक्त तेरे मोबाइल का क्या बिल बन रहा होगा? ___'दोस्त, अपने को मोबाइल से मत तोल। अभी तो बीस बरसों का प्री-फ़ेस पढ़ा है। चैप्टर तो मिलने पर ही खुलेंगे।' ____ मैं हँस पड़ा था। प्रफुल्ल को मैंने बहुत चाहा। चन्द पलों में ही हम इतने करीब आ गए थे, जैसे बरसों से एक दूसरे को जानते हों। उसकी आँखों में मुझे एक गहराई नज़र आती थी, जिसमें मैं डूब-डूब जाता था।और जब कुछ बरस बीत गए तो हम एक दूसरे में पूरी तरह समाहित हो गए थे.. और तब, प्रफुल्ल एकाएक इतनी दूर चला आया था। यों लगा नहीं था कि वह इतनी दूर चला गया है। उसके साथ गुज़ारा एक-एक पल जैसे शेष जीवन के लिए काफी था। हालाँकि सदमा तो लगा था और मैंने कहा था ये क्या कह रहा है तू! मुम्बई जाएगा। इस तरह से बीजी और बाऊजी को छोड़कर। और वो भी एकदम से।' 'निर्णय एकदम से ही लिए जाते हैं रजत! सोच-समझकर और धीरे-धीरे लिए गए निर्णय से कई बार व्यक्ति चूक भी जाता है, और फिर वह सारी उम्र हाथ मलता रह जाता है।' ____ हाँ! मैं भी हाथ मलता रह गया था। रोहण भैया ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था, 'अब तुम्हारे पर कोई ज़िम्मेवारी नहीं है । माँ-पिताजी ने मुक्ति पा ली है। तुम भी अगर अपने बारे में सोच लो, तो हम भी पूरी तरह से मुक्त हो जाएँगे।' रोहण भैया की बात का अर्थ नहीं समझ पाया था। लगा था, इनके संरक्षण के बिना कैसे जी सकता हूँ। और फिर मैं चला गया तो ये बिल्कुल अकेले हो जाएंगे। बाऊजी की अन्तिम विदाई पर भाभी ने कसम खाई थी कि वह मुझे रोहण भैया की तरह रखेंगी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद भाभी ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कह दिया था, 'क्या मैं रोहण को इस चारदीवारी में बन्द करके रसूंगी।' __ भाभी की बात का अर्थ मेरी समझ में आने लगा था। रोहण भैया दबे से बोले थे तुम कोई नौकरी क्यों नहीं तलाशते?' कितने-कितने घण्टे इसी मंज़िल पर सड़ना मैं कह तो गया, लेकिन मैंने महसूस नौकरी! इस देश में, इस शब्द की पड़े।' किया कि प्रफुल्ल को यह सब अच्छा नहीं समस्या से मैं भी जकड़ गया था। सुबह से प्रफुल्ल के शब्दों में जो कड़वाहट थी, लगा है। यकीनन, यह अच्छी लगने वाली शाम तक न जाने कितने ही दफ्तरों के मैं उसे पूरी तरह से नहीं समझ पाया था। बात भी नहीं थी। मैंने शब्दों को बदलते हुए चक्कर लगा आता। ऐसे में कह दिया, 'भई अगर अपने पास बात को आगे बढ़ाया, 'प्रफुल्ल, तुझे भाभी हँसी थीं, 'बबुआ! इस शहर की वक्त नहीं तो दूसरे से स्पष्ट बात भी तो की तकलीफ देना मेरा मकसद नहीं था। लेकिन सरहद से बाहर निकलोगे तो कुछ बनेगा। जा सकती है।' कुछ छिपाना या झूठ बोलना मेरे मन ने लोग तो नौकरी पाने के लिए सात समुद्र पार नहीं रे! यहाँ कुछ भी स्पष्ट नहीं है। गंवारा नहीं समझा। सच कैसा भी हो, उससे निकल जाते हैं। तुम अपनी ही खूटी के चारों जाने कब किसकी ज़रूरत आन पड़े, कुछ कब तक भागा जा सकता है।' ओर चक्कर लगाने में लगे हो।' पता नहीं ।बस, जीने के लिए केवल जुगाड़ प्रफुल्ल कुछ नहीं बोला। बस, मेरे चेहरे जीवन की वास्तविकता को अब समझ करने पड़ते हैं यहाँ।' प्रफुल्ल की बातें की ओर देखता जा रहा था। सम्भवतः और पाया था मैं । हर व्यक्ति को अपने लिए खुद पहेलियों की तरह लगने लगी थीं। मैंने भी बहुत कुछ सुनना चाहता था वह । मैं उसी रौ ही जीना होता है। या यों कह लो कि जीने हँसते हुए कह दिया, 'भई, बड़े नगर के में बोला ' प्रफुल्ल! तुम जितना दूर चले के लिए अपने ही जिस्म को चलाना होता लोगों की बड़ी-बड़ी बातें अपनी समझ में आए, उतना ही बाबूजी के और करीब हो रों के लिए छोड़ देते हैं, वह नहीं आने की।' हम दोनों का सम्मिलित गए। उन्हें गर्व है तुम पर। तुमने पैसा केवल बोझ होता है। एकाएक प्रफुल्ल का ठहाका गूंजा था। गैस पर दो कप चाय चढ़ा कमाया, नाम कमाया, इसी से वे अपने रिक्त ध्यान आया था। अच्छा रहा वह। कितना प्रफुल्ल ने साथ लाया पॉलिथिन का होते जीवन को भर लेते हैं।' आगे निकल गया है। ढेर पैसा कमा रहा है। लिफाफा खोला ।कुछ खाने-पीने का सामान 'जानता हूँ रजत। पैसा आज की बहुत मेरी तरह कविता और कहानी ही तो लिखा वह साथ लाया था। बड़ी ताकत है। और बाऊजी को अगर आज करता था। किचन काफी बड़ी थी। एक ओर बड़ा मुझ पर गर्व है तो केवल मेरे पैसे की वजह ___ 'कहानी और कविता ही आज उसके सा फ्रिज, दूसरी ओर शेल्फ पर ढेरों बर्तन। से। नाम और शोहरत क्या होती है, यह लिए आजीविका बन गई।' 'अरे! इतने बर्तन! अभी तो तेरी शादी बात उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।' __'बन नहीं गई। उसने बना ली।' भाई भी नहीं हुई। पूरा घर बना लिया तूने तो।' प्रफुल्ल की बात पर मैं झेंपा थागरजे थे, 'तम भी उस मुकाम पर पहँच 'व्यक्ति अकेला हो या दकेला, हर रात वह व्हिस्की की बोतल ले आया। सकते थे। यहाँ से निकलोगे तो कुछ हो सामान की ज़रूरत पड़ती है उसे। हम लोगों कमरे की सभी खिड़कियाँ खोलते हुए पाएगा। तुम सोचते हो, कागज़ काले करके का लाइर्फस्टाइल ही ऐसा है।' बोला, 'तुम्हें यहाँ कैसा लग रहा है?' उन्हें अलमारी में बन्द करके रख दिया और वह ठीक कह रहा था। चाय को कप में बहुत अच्छा! देखो तो, हवा के ठण्डे अमर हो गए। डालता हुआ बोला, 'छलनी नहीं है मेरे झोंके कैसे लुभा रहे हैं।' लिफ्ट की आवाज़ ने मझे वर्तमान में पास।' 'हाँ! इन्हीं झोंको ने मुझे लुभाया था। खींचा था। प्रफुल्ल की इन्तज़ार में पूरे मैं मुस्कुरा दिया, 'सब चलेगा।' _ 'क्या तुम यहाँ खुश नहीं हो ?' पैन्तीस मिनट निकल चले थे। लिफ्ट से चाय सुड़कते हुए वह बोला, 'कभी दरअसल जब से वह मिला था, उदासी कोई औरनहीं, प्रफुल्ल ही बाहर आया था। किसी से मुलाकात हुई क्या?' उसके चेहरे से स्पष्ट झलक रही थी। हम यों लिपट गए थे, मानों किसी ने साये उसका आशय मैं समझ गया था। लेकिन उसकी हँसी के ठहाके मुझे उलझन को उसके जिस्म से अलग कर दिया हो। यकीनन वह अपनेघर-परिवार के बारे में पूछ में डाल रहे थे। अब उसने उदासी साफ 'बहुत देर लगा दी?' रहा था। कल आते हुए बाबूजी से ही फ़ोन जाहिर कर दी, तो मैं पूछे बिना न रह सका। 'हाँ! साला एक डायरैक्टर मिल गया पर सारा अता-पता और फ़ोन नम्बर लिया 'अब खुशी की परिभाषा क्या होती है, थापिछले पन्द्रह दिनों से सर खाए जा रहा था मैंने। लेकिन कोई विशेष बात या मैं तो यह भी नहीं समझ पा रहा रजत।' है। उसे कोई नया स्क्रिप्ट चाहिए।' मुलाकात तो आते-आते नहीं हो पाई थी। प्रफुल्ल एक बड़ा पैग एक ही घूट में चढ़ा प्रफुल्ल ने ताला खोल भीतर कदम चन्द रोज़ पहले बाबूजी मन्दिर में मिले थे। गया था। रखा। मैं उसके पीछे हो लिया था। मेरे भीतर वहीं पर सभी के बारे में जायज़ा ले लिया मुझे सिप करते देख बोला, 'तुम आराम पाँव रखते ही वह बोला, 'दरवाज़ा लॉक कर था। से पीना |मुझे आदत हो चुकी है।' दे।' महेन्द्र अपनी बीवी को लेकर अलग 'जानता हूँ। बहुत सुना-पढ़ा है कि 'क्यों, क्या बात?' मैं उसकी बात से मकान में हो गया है। चन्दर को टी बी हो मीडिया में आकर अगर कम्पनी न की जाए कुछ शंकित सा हो आया था। गई है। इलाज चल रहा है। लेकिन जाने तो आदमी फ्लॉप हो जाता है।' ___'यहाँ कैसे-कैसे लोग आते हैं, तुम्हें क्यों, मर्ज़ बढ़ता ही जा रहा है। डॉक्टर 'तुमने ग़लत सुना-पढ़ा है।' नहीं मालूम । यहाँ अगर 'की- होल' न हो, कहते हैं, इसे शारीरिक बीमारी नहीं, 'ग़लत सुना है ! क्या कह रहे हो?' नहीं करता। लेकिन जब अपना ही जीवन अहसास होने लगा था। बत्ती पुनः आई तो चेहरे गड्डमड्ड होते चले गए थे और कटरा-कतरा होकर अपने ही सामने बिखरने मेरी जान में जान आई। पानी-पानी होता मेरा उसका असली चेहरा मेरे सामने से लुप्त लगता है, उसे समेटने के लिए ऐसा करना माथा और शरीर प्रफुल्ल नहीं देख पाया था होता चला गया था।मुम्बई आते हुए प्रफुल्ल पड़ता है। यों कह लो कि व्यक्ति अनायास अँधेरे में। ने बताया था कि विभा अपने वैवाहिक ही इस शराब में डूबने लगता है।' अब तक प्रफुल्ल को शायद मेरे किन्ही जीवन में खुश नहीं है। मैंने उसे सांत्वना देते 'तुम भावुक हो रहे हो प्रफुल्ल!' शब्दों का इंतज़ार था। हालाँकि इस सबके हुए कहा था ये रिश्ते ऐसे ही होते हैं। कई __'हाँ! तूने ठीक जानाज़िन्दगी यहाँ लिए मुझे स्वयं को भी लग रहा था कि मैं बार इनमें सामंजस्य लाने में समय लग जाता इतनी व्यवहारिक हो गई है कि जब कभी अधिक न सही, उसकी बातों के रिसपॉन्स है। दो अलग परिवारों के व्यक्ति, अलग थोड़ा सा एकान्त मिलता है, तो अपने बारे में में कुछ तो बोलूँ। लेकिन इस वक्त मुझे यह सोच, अलग संस्कार.. प्रायः ऐसा होता है। सोच खुद से ग्लानि होने लगती है। ऐसे में भी महसूस हो रहा था कि मेरी आवाज़ कहीं तुम चिन्ता नहीं करो।' प्रफुल्ल मुस्कुरा दिया भावुकता आड़े आ जाती है।' हवा का एक इसी अँधेरे के पीछे दब गई है। प्रफुल्ल था। बस वही अन्तिम मुस्कराहट मैंने तेज़ झोंका भीतर आया तो महसूस हुआ कि अभी मेरे सामने सवाल रख देगा कि मैं इतना प्रफुल्ल के चेहरे पर देखी थी। उसमें एक गीलापन हैहम दोनों ने चेहरा खामोश क्यों हूँ। तब एकाएक क्या जवाब विभा के बारे में बाऊजी से भी कोई बात खिड़की की ओर घुमाया। वर्षा शुरू हो दूँगा। लेकिन प्रफुल्ल ने कोई सवाल नहीं नहीं हुई थी। लेकिन एक बार बीच-बाज़ार चुकी थी। बँदों की बौछार जैसे अन्तर्मन को किया था। यह केवल मेरी अपनी सोच थी। में चलते-चलते समीरा से भेंट हो गई थी भिगोने लगी थी। लेकिन प्रफुल्ल के भीतर वह उसी रौ में बोला, 'विभा दी कहाँ है और उसने बताया था कि विभा देवेन को इस वक्त क्या है, मैं पूरी तरह से नहीं समझ आजकल? बाबूजी के पास या...?' छोड़ आई है। उसके साथ धोखा हुआ है, पा रहा था। मुझे लग रहा था, इस वक्त वह प्रफुल्ल का असली दर्द मैं अब छू पाने विभा ने समीरा से बताया थालेकिन कैसा जितना भावुक हो रहा है, भीतर से उतना लगा था। लगा, वह अभी तक भूमिका बाँध धोखा, समीरा ने नहीं बताया और हमारी कठोर भी हो रहा है। पैग बनाते हए बोला, रहा था। विभा शब्द से ही उसका स्वर परी बातें कॉलेज के उन तमाम चेहरों को छने 'कमरे की लाइट बुझा कर विण्डो-शेड की तरह से काँप गया था। सम्भवतः घर- लगी थीं, जो हमारे अन्तरंग थे। यह बात मैंने लाइट जला दे।' परिवार में वह सबसे पहले विभा के बारे में स्पष्ट रूप से प्रफुल्ल से बता दी थी। जाने क्यों मुझे लगा, वह अँधेरे में डूब ही जानना चाह रहा था। लेकिन विभा इस इस वक्त प्रफुल्ल जाना चाहता है। खिड़की से बाहर विण्डो- वक्त मेरे मन- मस्तिष्क से पूरी तरह से में जानने को उत्सुक हो उठा था। शेड की लाइट हमारे चेहरे पर न पड़कर मेज़ नदारद थी। उसका कोई स्पष्ट चित्र मेरे 'तुम्हारी कभी विभा से बात नहीं हुई पर सीधी पड़ने लगी थी। प्रफुल्ल थोड़ा-सा सामने नहीं बन पा रहा था। कॉलेज के बाद क्या?' प्रफुल्ल विभा दी कहता था लेकिन आगे की ओर झुकता हुआ बोला, 'जब घर मैंने विभा को केवल उसकी शादी के मण्डप मेरे मुँह से हमेशा विभा ही निकलता था। से निकला था, मानस भैया की आँखों से पर देखा था। दल्हन बनी विभा में मैं कॉलेज विभा उम्र में बडी होते हए भी मझे नादान एक बूँद आँसू टपकते हुए देखा था। जाने वाली विभा ढूँढ़ता रह गया था। अक्सर लगती थी। क्यों लगा था, मैं उस घर की चौखट हमेशा कॉलेज में इधर से उधर आते-जाते हमारा प्रफुल्ल कुछ पल के लिए उठ गया और के लिए लाँघ आया हूँ। कितनी बार तो सामना हो जाता। जाने ऐसा क्या था कि हम टॉयलट होकर वापिस अ उनके मुँह से सुन चुका था, कोई नौकरी दोनों एक -दूसरे को देखते ही ठिठक से बोला, 'कल डॉक्टर के पास जाना है।' तलाश ले कहीं जाकर। मैं जानता था, एक जाते और पलभर के लिए हमारे पाँव वहीं क्यों?' छोटी सी छत के नीचे हम तीनों भाई गुज़ारा जम जाते। हमारे बीच की इस जड़ता का 'कुछ यूरीन-इन्फैक्शन चल रही है। नहीं कर पाएँगे।' प्रफुल्ल पलभर को रुका कहीं भी अन्त नहीं हो पाया था। प्रफुल्ल से बहुत दवाइयाँ खा ली हैं, कोई फर्क नहीं फिर ठण्डी आह भरता बोला, ' सोचता हूँ, दोस्ती के बाद तो मैं विभा से कतराकर ही पड़ा।' मानस भैया माँ और बाबूजी से अधिक निकल जाता। लेकिन कॉलेज के आख़िरी 'क्यों?' समझदार निकले।' दिनों में विभा स्वयं ही मेरे सामने आ खड़ी 'पता नहीं। कल एक्स-रे होना है।' ___ एकाएक बत्ती गुल हो गई थी। लगा, हुई थी, कोई हमें अच्छा लगने लगे तो इसमें 'ऐसे में यह शराब..!' प्रफुल्ल सच में इस अँधेरे में कहीं डूब गया बुराई क्या है। हम बात तो कर सकते हैं। मैं नहीं जानता।' हैज्कहीं खो गया है इस अँधेरे में। एकाएक विभा ने तो कह दिया लेकिन मैं कुछ सोचा कह दूँ, कोई रोग तो नहीं लगा दहशत से भर आया था मैं । मन हुआ, ज़ोर नहीं कह सका। उसी के शब्दों को दोहराना लिया। लेकिन इस वाक्य को मैं टाल गया। से प्रफुल्ल को एक आवाज़ लगाऊँ या फिर उस वक्त जाने क्यों बेमानी सा लगा। मेरी एकाएक जाने क्यों लगा, प्रफुल्ल विभा की हाथ आगे बढ़ा कर उसे छू कर देख लूँ। चुप्पी का कुछ और अर्थ ले गई विभा, बात को टालना चाहता है। मैंने सीधे से पूछ बहुत मुश्किल से खुद को रोक पाया था मैं। जानती हूँ, प्यार एक तरफा हो, तो सिरे नहीं लिया, 'इस बीच तुम्हारी विभा से कोई बात मेरा साँस फूलने लगा था। मैं पसीने से तर- चढ़ता। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगी। नहीं हुई क्या?' ब-तर हो रहा हूँ, मुझे खुद को इसका विभा की विदाई के बाद वे दोनों ही हुई थी।'
'कब?' पाऊँगा। मिलना भी नहीं चाहता! लेकिन 'जब देवेन को छोड़ कर चली आई कर्कभी-कभी जी चाहता है, कोई चलतेथी।' चलते बता दे, विभा दी ज़िन्दा हैं। वे ठीक 'क्या कहती है?' हैं... वे खुश हैं...।' 'नहीं रहना चाहती उसके साथ।' प्रफुल्ल ने एकाएक विषय बदल दिया, 'क्यों ?' 'लोग समझते हैं, हम बहुत बड़े लेखक हैं'कहती है, वह तन से भी नपुंसक है, क्योंकि दुनिया के सामने पर्दे पर हमारा नाम मन से भी।' आता है। लेकिन टुकड़ों को जोड़-जोड़ ___ आकाश में बिजली कौंधी थी। लगा था, कर, कभी इधर-कभी उधर करते हुए लगता प्रकृति भी काँप उठी है। बरसात ज़ोरों पर है, हम पात्रों के साथ बलात्कार कर रहे हैं। होने लगी थी। क्या बरसात भी रुदन करने खुद से ग्लानि होने लगती है रजत।' लगी है। इस वक्त बरसात न होती तो प्रफुल्ल एक पल को रुका फिर बोला, प्रफुल्ल को लेकर कहीं बाहर निकल जाता। 'जीवन कोई गणित तो नहीं है रजत । परन्तु यह बात मेरे लिए भी अविश्वसनीय थी, जीवन के शुरू में ही हम अपने जीवन की फिर प्रफुल्ल कैसे सह पाया होगा? एक इबारत लिख डालते हैं। हमें क्या करना पैग बनाते हुए प्रफुल्ल बोला, 'इसी है, कब करना है, कैसे करना है.. बस उसी विषय को लेकर एक छोटा-सा स्क्रिप्ट तैयार को हल करते जीते चलते हैं। जीवन एक ही किया था। एक डायरेक्टर को दिखाया तो ढर्रे पर चलता चला जाता है और कहीं से उसने वह पुलिंदा एक ओर फेंक मारा था। जब वह ढर्रा टूटने लगता है, तो हम रजत, यहाँ इन्सान दूसरे की भावनाओं को फरस्ट्रेटिड होने लगते हैं। आई हेट दिस नहीं समझ पाता। उन्हें वही चाहिए, जो वे रजत। लाइफ शुड बी एडवेन्चरस!. सोचा सोचते हैं। जाने कितना कुछ आत्मसात् था, एडवेन्चर जीवन में न पा सका तो इन करके लिखा, लेकिन सब रिजेक्ट होता कहानियों में पा लूँगा। लेकिन यहाँ भी एक चला गया। अब हम वही लिखते हैं, जो बंधे-बंधाए ढर्रे की कहानी की इबारत उन्हें चाहिए। वे कहते हैं, पब्लिक ऐसा पकड़ा दी जाती है और फिर उसी को हल माँगती है। क्या लोग सच में बदल गए हैं करना पड़ता है।' प्रफुल्ल पैग बनाने लगा तो रजत! दूसरे के दर्द को वे सच में नहीं समझ मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया, पाते या समझना ही नहीं चाहते? 'बस्स! बहुत ले बैठे हो तुम। अब बस प्रफुल्ल के इस सवाल का जवाब देना करो।' ज़रूरी नहीं लगा। उसने सवाल तो रख 'घबराओ नहीं!' प्रफुल्ल हँस पड़ा, दिया, पर सब समझता है, सब जानता है। 'अभी नहीं मरूँगा। आज तुम आए हो, इसी 'विभा दी से कह दिया था एक बार, खुशी में ज़्यादा ले गया। बस आख़िरी पैग है लौट जाओ उस व्यक्ति के पास! वह दया यह।' का पात्र है। तुम्हारे चले आने से बिल्कुल अब नहीं रोका था मैंने उसे। आख़िरी टूट जाएगा वह।' प्रफुल्ल फिर उसी रौ में पैग में वह मेरा भी साथ चाहता था और मैंने बह उठासाथ दिया। 'नहीं मानी थी विभा दी। सर पटक- बरसात उसी तेज़ी से टपक रही थी। पटक कर लहूलुहान कर लिया था अपने आँखें उनींदी होने लगी थीं। प्रफुल्ल उठते आप को। कहने लगी, नहीं भैया! नहीं जी हुए बोला, 'रजत, सब कुछ तुम्हीं से कह सकती उस व्यक्ति के साथ मैं। आई हेट गया! और किससे कहता |कुछ तुम भी हिम...आई हेट हिम! उसके बाद विभा दी कहना चाहते हो, मैं जानता हूँ। तुम्हारे से इस बात को दोहराना बेमानी लगा था। जीवन की भी एक इबारत होगी। हम सुनेंगे अगर इस बात को उन पर थोपा जाता, तो उसे। उसका भी कोई हल होगा।' सम्भवतः वे आत्महत्या कर लेतीं।' प्रफुल्ल ऊपर वाले कमरे में जा कर सो प्रफुल्ल ने एक घुट भरा और उसाँस गया। मैं अपने जीवन की इबारत में कहीं भरता बोला, 'विभा दी को मिले बहुत देर विभा को ढूँढने लगा था।