साक्षात्कार सोशल साइट्स का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इन्होंने सबको हीरो बना दिया है


अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति हर वर्ष बीस से बाईस कवि सम्मलेन पूरे अमेरिका और कैनेडा में करवाती है। मैं कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक थी। इन कवि सम्मेलनों से एकत्रित धन को हिन्दी के प्रचार-प्रसार में प्रयोग किया जाता है। अमेरिका की भौगोलिक स्थिति ऐसी हैकि यह देश बहुत फैला हुआ है। हिन्दी भाषी भी फैले हुए हैं। कवि सम्मेलनों के बहाने वे एक छत तले इकट्टे होते हैं और भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए साथ और सहयोग देते हैं। एक वर्ष भारत से सोम ठाकुर, डॉ. उदय प्रताप सिंह और अभिनव शुक्ल कवि सम्मेलनों के लिए बुलाए गए थे। मैं अभिनव से उसी समय मिली थी। ऊर्जा से भरपूर दुनिया को बदलने की इच्छा रखने वाले, पढ़ने, बहस करने के शौकीन, संस्कारों से लबालब, विनम्र और आकर्षक व्यक्तित्व वाले नौजवान से मिल कर अत्यंत प्रसन्नता हुई थी। अभिनव कवि के साथसाथ एक बेहतरीन इंसान भी है। उसके कुछ समय बाद अभिनव अमेरिका आ गए। यहीं रच बस गए। बातचीत और मुलाकातों का सिलसिला बढ़ गया। अभिनव शुक्ल से बात करके जो कुछ इकट्ठा किया, लिख रही हूँ प्रश्न : अभिनव, पहले पहल क्या लिखा गद्य या पद्य, और लेखन का प्रारम्भ कब और कैसे हुआ? यानि आपके प्रेरणा स्रोत क्या थे? उत्तर : पहले कविता ही प्रगट हुई। मैं केंद्रीय विद्यालय में पढ़ता था। विद्यालय में काव्य पाठ प्रतियोगिताएँ होती थीं; जिसमें छात्र दिनकर जी, बच्चन जी और मैथलीशरण गुप्त जी आदि की रचनाएँ सुनाते थे। मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी स्वयं की रचना पढ़े और इस प्रकार पहली रचना आज शाम को यूँ ही जाकर खड़ा हो संसाधनों के प्रयोग के चलते लाखों लोग लिखी गई। मैं ग्यारहवीं में पढ़ता था तब की गया अपनी बालकनी पर,/ बारिश बिलकुल अपनी रचनाएँ एक दूसरे तक पहुँचा पा रहे हैंबात है। बाद में जब कालेज पढ़ने गया तो वैसे ही हो रही थी जैसे सियैटल में होती और अनेक लोग रोज़ कविता के प्रति डॉ. बृजेन्द्र अवस्थी और डॉ. उर्मिलेश जैसे है, नीचे एक लड़की पिज़्ज़ा डिलीवर आकर्षित हो रहे हैं। आज जितनी प्रकार की काव्य के शिखरों से मिलने और उनके करने जा रही थी, / कार से नहीं पैदल, कविता हिन्दी भाषा में लिखी जा रही है; सानिध्य में रहने का अवसर मिला तथा ये कभी एक हाथ में पिज़्ज़ा का बड़ा थैला वह अपने आप में उत्साहित करती है। एक काव्य धारा आगे बह निकली। बाद में उदय पकड़ती, / कभी दूसरे में, / हाथ थक रहा और प्रगतिशील कवि है जो कविता को प्रताप सिंह जी का आशीर्वाद मिला और था, / उसने मुझे देखा तो मैंने इशारे से उसे आंदोलन से जोड़ रहे हैं, दूसरी ओर मंचीय कविता के नए आयाम से परिचित होने का थैला सर पर रखने को कहा,/ उसने झट वो रचनाकार हैं जो अपनी कविता को बहुत भी अवसर मिला। तब से अब तक सीखने थैला सर पर रखा, / बिलकुल वैसे जैसे सहज और सम्प्रेषणीय बना रहे हैं, तो और पढ़ने की एक निरंतर प्रक्रिया प्रारम्भ हुई अपने यहाँ मज़दूरनियाँ सर पर उठा लेती हैं, एक ओर अनेक एकांत साधक है जो निरंतर जो शायद जीवन भर चलेगी। / पूरी की पूरी ईमारत की ईटें, / आगे के कुछ न कुछ लिख रहे हैं। कविता खूब प्रश्न : महादेवी, पंत, निराला, हरिवंश मोड़ पर जाकर, / उसने धन्यवाद में हाथ लिखी जा रहे है और खूब बढ़िया-बढ़िया राय बच्चन और फिर भवानी प्रसाद मिश्र के हिलाया, / और ज़ोर से मेरी क्रिसमस की भी लिखी जा रही है। समय की मंचीय परम्परा और कविताओं आवाज़ लगाई। प्रश्न : भारत से दूर हुओं को भारतीय तथा आज की मंचीय कविताओं के स्तर में प्रश्न : अमेरिका में रहते हुए आप मंचों संस्कृति, अपनों का प्यार या मिट्टी की बहुत अंतर आ चुका है। मंचों पर आज पर किस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते खुशबू, इनमें से कौन और कैसे बाँध कर हास्य और व्यंग्य के साथ-साथ चुटकलों हैं; जबकि यहाँ कवि सम्मलेन बहुत कम रखता है? की भरमार होती है। आपकी इस तरफ़ रुचि होते हैं। उत्तर : भारत से दूर हुए लोगों में भारत कैसे और क्यों हुई? उत्तर : कवि सम्मेलनों में जाना तो कम को यहाँ बसाने की एक तीव्र उत्कंठा रहती उत्तर : मुझे लोगों को हँसते और हुआ है। वैसे तो यहाँ अब खूब कवि है। आपके इस प्रश्न के उत्तर में मैं अपनी मुस्कुराते हुए देखना बहुत पसंद है। और सम्मलेन होते हैं, पर उनमें से अधिकतर में एक कविता उद्धृत करना चाहूँगा। ऐसे में जब श्रोता मेरे काव्य पाठ को सुन कर भारत से बुलाए गए कवियों को प्रधानता दी आबादी से दूर, घने सन्नाटे में, / निर्जन प्रसन्न होते हैं तो मुझे एक आत्मिक सुख की जाती है। और यह सही भी है। पर जो वन के पीछे वाली, ऊँची एक पहाड़ी पर, / अनुभूति होती है। मंच पर कल जो होता था सबसे बढ़िया बात हुई है कि इससे यहाँ एक सुनहरी सी गौरैया, अपने पंखों को वो आज नहीं है और आज जो होता है वो स्वाध्याय के लिए बहुत बढ़िया समय मिल फैलाकर,/ गुमसुम बैठी सोच रही थी, कल कल नहीं होगा, आज चुटकुलों का दौर है; जाता है। फिर मैं उड़ जाऊँगी, पार करूंगी इस जंगल जिससे कोई मंचीय कवि अछूता नहीं है पर प्रश्न : विदेशों की बहुत सी संस्थाएँ को, वहाँ दूर जो महके जल वाट्स अप के प्रसार के बाद अब सिर्फ भारत से कवियों को बुलाती हैं और कवि एक तलैया है, उसका थोड़ा पानी पीकर, चुटकुलों वाले कवियों के हूट होने का दौर सम्मलेन करवाए जाते हैं, क्या भारत वाले पश्चिम को मुड़ जाऊँगी, फिर वापस ना भी आ रहा है। भी यहाँ के मंचीय कवियों को वहाँ बुलाते आऊँगी, लेकिन पर्वत यहीं रहेगा, मेरे सारे प्रश्न : प्रवास आपकी रचनाशीलता में हैं। संगी साथी, / पत्ते शाखें और गिलहरी, क्या स्थान रखता है? प्रवासवास ने आपको उत्तर : मेरे पास कई बार भारत से मिट्टी की यह सोंधी खुशबु, / छोड जाऊँगी और आपकी सृजनात्मकता को कितना आयोजकों का फ़ोन आया है, उनकी इच्छा अपने पीछे ....,/ क्यों न इस ऊँचे पर्वत को, प्रभावित किया है। रही है कि मैं उनके कार्यक्रमों में काव्य पाठ अपने साथ उड़ा ले जाऊँ, / और चोंच में उत्तर : प्रवास ने बहुत प्रभावित किया करूँ, पर यहाँ से भारत का किराया और मिट्टी भरकर, थोड़ी दूर उड़ी फिर वापस, / है। एक नए समाज से परिचित होने का उसपर मानदेय आदि इतना हो जाता है कि आ टीले पर बैठ गई ....../ हम भी उड़ने अवसर मिला, अमेरिका की विशेषताओं को ये बातें अभी तक तो सिर्फ बातें ही रह गई की चाहत में, कितना कुछ तज आए हैं, / निकट से देखने को मिला, यहाँ बसने वाले हैं। हाँ जब मैं वर्ष दो वर्ष में भारत जाता हूँ यादों की मिट्टी से आख़िर, कब तक दिल अंग्रेज़ी कवियों से वाद विवाद भी हुए और तो वहाँ अनेक कवि सम्मेलनों में भाग लेता बहलाएँगे, / वह दिन आएगा जब वापस, इनकी जीवन शैली से प्रभावित भी बहुत हूँ। भरत में युवा कवियों की जो पीढ़ी आ फिर पर्वत को जाएँगे,/ आबादी से दूर, घने हुआ। कर्म योग का जो सहज स्वरुप मुझे रही है उसकी ऊर्जा और उमंग देख कर मन सन्नाटे में। अनेक अमेरिकी लोगों में देखने को मिला; बहुत प्रसन्न होता है। प्रश्न : अभिनव, कहा यह जाता है कि उसने भी प्रभावित किया। मेरी अनेक प्रश्न : आज की हिन्दी कविता के बारे बाज़ारवाद ने हिन्दी साहित्य को प्रभावित कविताएँ यहीं के परिवेश से सीधे-सीधे में आपके क्या विचार हैं? किया है। इस पर आप क्या सोचते हैं? आप उठाई हुई हैं। उत्तर : आज हिन्दी कविता का स्वर्णिम की राय जानना चाहती हूँ। एक ये रचना देखिएः दौर है। इंटरनेट और अन्य तकनीकी उत्तर : बाज़ारवाद ने सब कुछ प्रभावित किया है तो साहित्य कैसे अछूता रह सकता है। बाज़ार का सच ही अंतिम सच बन कर उभर रहा है और जो इसके विरुद्ध जाता हैउसे कीमत चुकानी पड़ रही है। बाज़ारवाद के कारण साहित्य अपनी उन्मुक्तता और आनंद खो रहा है, साहित्य स्वतंत्र होना चाहिए, अपितु कोई भी कला तब ही पनपती है जब कलाकार स्वतंत्र हो। बाज़ार इस स्वतंत्रता को छीन रहा है। इसके चलते लेखक परेशान है, मन की बात लिखने में डर रहा है और लिख भी रहा है तो उसके दाम चुका रहा है। मेरी कामना है की बाज़ारवाद व्यवसाय की हदों में रहे और कला इससे पूरी तरह दूर रह कर अपनी साधना करे। प्रश्न : आप सोशल साइट्स से जुड़े हुए हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार और साहित्य के लिए ये कितने सहायक हैं। उत्तर : सोशल साइट्स का सबसे बड़ा योगदान ये है कि इन्होंने सबको हीरो बना दिया है। अपने फेसबुक पेज पर और अपने ब्लॉग पर, अपनी वेबसाइट पर मैं हीरो हूँ। कोई यदि वहाँ जाता है तो उसे मेरी बढ़िया तसवीरें, मेरे बारे में अच्छी बातें और मेरी कविताएँ पढ़ने को मिलेंगी। इसके चलते एक अहम् तुष्टि का भाव लोगों के मन में आया है और कहीं-कहीं ये आत्ममुग्धता में भी परिवर्तित हुआ है। आपने भी तो अपने एक व्यंग्य में इसपर चुटकी ली है। जहाँ तक हिन्दी की बात है, इससे हिन्दी को भी एक नए स्पेस में हीरो बनने का अवसर मिला है, अनेक लोग हिन्दी में लिख रहे हैं और खूब लिख रहे हैं। दूसरी चीज़ है कि अब लेखक संपादकों का गुलाम नहीं रह गया है, मैंने जो लिखा अपने फेसबुक पर डाल दिया, ब्लॉग पर पोस्ट कर दिया। कुल मिलकर मैं इस माध्यम के खुलने से बहुत खुश हूँ और कुछ मुझे लगता है इससे हिन्दी को कई नए गएलेखक और कवि मिले हैं और आगे भी मिलते रहेंगे। चिंता अभिनव आप जैसे हैं वैसे ही सरल, सादा बने रहें। विनम्रता ही मनुष्य को आगे लेकर जाती है। आपकी जल्दी-जल्दी और मिली पुस्तकें आएँ और आप कवि सम्मेलनों की शोभा बढाते रहें। हृदय से शुभकामनाएँ।


अभिनव शुक्ल संप्रतिः


गुणवत्ता विभाग में निदेशक। शिक्षाः बिट्स पिलानी में सॉफ्टवेयर सिस्टम्स में स्नातकोत्तर, रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय से वैद्युत अभियांत्रिकी में स्नातक। प्रकाशित कृतियाँ: हास्य दर्शन -काव्य एलबम, अभिनव अनुभूतियाँ -काव्य संग्रह), हास्य दर्शन दो-काव्य एलबम), पत्नी चालीसा-हास्य कविता संग्रह, हम भी वापस जाएँगे-काव्य संग्रह) रचनात्मक सहयोगः विश्व हिन्दी सम्मलेन, न्यू यॉर्क 2006, उत्तरी अमेरिका के हिन्दी साहित्यकार, प्रवासी साहित्यः जोहान्सबर्ग के आगे, वागर्थ, गर्भनाल, हिन्दी चेतना, स्वतंत्र चेतना, राजस्थान पत्रिका, हिन्दी जगत्, विज्ञान प्रकाश, दक्षिण समाचार, दक्षिण भारत, दक्षिण ध्वज, विश्व विवेक, अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिन्दी नेस्ट, वेब दुनिया, साहित्य कुंज, कलायान पत्रिका, कृत्या समेत देश-विदेश से प्रकाशित होने वाली अनेक पत्र पत्रिकाओं एवं संकलनों में कविताओं का प्रकाशन। 'निनाद गाथा' (ब्लॉग) वर्ष 2006 से अब तक निरंतर। हिन्दी चेतना' (त्रैमासिक) (2006 से 2015) के सह संपादक रहे हैं। उल्लेखनीय गतिविधियाँ/ उपलब्धियाँ/ प्रतिभागिताः आपने अनेकानेक सम्मेलनों/ कार्यशालाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है। अनेक टीवी तथा रेडियो चैनलों पर काव्य पाठ एवं साक्षात्कारों का प्रसारण। सियैटल में 'झिलमिल - हिन्दी कवि सम्मलेन' का पिछले पाँच वर्षों से नियमित आयोजन एवं सञ्चालन। अमेरिका तथा । कैनेडा में होने वाले कवि सम्मेलनों और मुशायरों में काव्य पाठ हेतु समय समय पर यात्राएँ । दो बार (2005 -2012 ) अमेरिका के दस से अधिक नगरों में वृहद् काव्य यात्राओं में आमंत्रित । डालस से प्रसारित होने वाले हिन्दी कविता के कार्यक्रम 'कवितांजलि' की दस कड़ियों का सञ्चालन। मान्यता/ पुरस्कार/ सम्मानः बदायूँ (2015), पिलखुआ (2010 ) एवं बैंगलोर (2008 ) में साहित्यिक संस्थाओं द्वारा नागरिक अभिनन्दन। भारत, अमेरिका और कैनेडा की अनेक संस्थाओं द्वारा, 'काव्य श्री', 'साहित्य गौरव', 'हिन्दी काव्य रत्न', 'हास्य कविराज' आदि सम्मानों से विभूषित ।संपर्कः ईमेल: shukla abhinav@yahoo.com